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दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं । सेवक स्तुति करत सदाहीं ॥ प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला । जरे सुरासुर भये विहाला ॥ धन निर्धन को देत सदाहीं । जो कोई जांचे वो फल पाहीं ॥ प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला॥ साधु संत के तुम रखवारे।। https://shivchalisas.com

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